मैत्री-निर्वाहण / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
पाण्डव बारह बरस वनवास बितैलकै
एक बरस अज्ञातवास बितैलकै ।
उपप्लव्य नगर मेॅ वीरोॅ रोॅ जमघट छेलै
महासंहार रोॅ वातावरण अपने आप बनी रहलोॅ छेलै ।
पाण्डव पक्ष रोॅ वीर युद्ध नै चाहै छेलै
श्रीकृष्ण दूत बनी केॅ हस्तिनापुर भेजनें छेलै ।
हठी दुर्योेधन कड़ा शब्दोॅ मेॅ उत्तर देलकै
बिना युद्ध रोॅ सूई रोॅ अग्र भाग तक नै मिलतै ।
पाण्डव कटु वचन सुनी केॅ चिंतित होलै
वासुदेव रोॅ संधि प्रयास विफल होय गेलै ।
हिनका भीष्म, विदुर अरियाते लेॅ
नगर रोॅ बाहर लै गेलै ।
कर्ण केॅ बोलाय केॅ आपनोॅ रथोॅ पर बैठलकै
कर्ण रोॅ खाली रथ, सारथी पीछू-पीछू लानलकै ।
आदर पूर्वक बैठाय केॅ श्री कृष्ण कर्ण सेॅ बोललै
‘‘तोहें बड़ा विचारवान धर्मात्मा छौ, यहेॅ बोललै ।
हम्में तोरा गुप्त बात बताय लेॅ चललोॅ छियौं
कान खोली केॅ सुनोॅ सही बात, बताय लेॅ चललोॅ छियौं ।
तोहें अधिरथ रोॅ संतान नै छेकौ
तोहें पाण्डु पत्नी कुन्ती रोॅ बड़ोॅ पुत्रा छेकोॅ ।
कन्यावस्था मेॅ कुन्ती सूर्य रोॅ आह्नवाहन करी नेॅ छेलै
सूर्य केरोॅ आह्नवाहन सेॅ कुन्ती नेॅ तोरा जनम देनें छेलै ।
युधिष्ठिर रोॅ तोहें बड़ोॅ भाय छेकोॅ
तोहें कुन्ती रोॅ बड़ोॅ पुत्रा छेकोॅ ।
दुर्योधन अनीति करै लेॅ तुली गेलोॅ छै
बड़ोॅ-बड़ोॅ योद्धा आपनोॅ पक्षोॅ मेॅ देखी रहलोॅ छै ।
भगवान कहे छै होकरोॅ साथ छोड़ी देहोॅ
पाण्डव पक्षोॅ मेॅ आपनोॅ स्वीकृति देहोॅ ।
कल तोरोॅ राज्याभिषेक करवाय दैभौं
पाँचो भाय तोरोॅ पीछू-पीछू चलै लेॅ तैयार होतौं ।
त्रिभुवन मेॅ तोरोॅ जोड़ कोय नै करै पारतै
जे भी टकरैतै, निश्चित हारतै ।’’
कर्ण है बात सुनी केॅ मुस्कुरैलै आरो बोललै
बचपन मेॅ तिरिस्कार करी देनें छेलै ।
केना केॅ संगत छोड़ियै विपत्ति मेॅ साथ देनें छेलै
दुर्योधन आश्रय देलकै आरोॅ सम्मानित करनें छेलै ।
हमरोॅ बलबूतोॅ पर युद्ध करै लेॅ तैयार होलोॅ छै
ई बात के हमरा लेॅ बड़ा मोल छै
है समय मेॅ साथ छोड़ना विश्वासघात होतै
नमक खैनें छियै हुनके सरियत नै देना आजीव होतै ।
कर्ण बोललैµ हम्में दुर्योधन रोॅ तरफ सेॅ लड़बै
भयंकर युद्ध मेॅ हार-जीत आपनोॅ कृपा सेॅ होतै ।
कर्ण कहै छैµ छत्रिय केॅ खाटोॅ पर पड़लोॅ नै मरना चाहियोॅ
युद्धभूमि मेॅ दुश्मन सेॅ लोहा लेनेॅ मरना चाहियोॅ ।
कर्ण ! तोहें हमरोॅ महत्वपूर्ण प्रस्ताव नै मानै छौ
आबेॅ युद्ध रुकै वाला नै झलकै छै ।
कृष्ण रथ रोकी देलकै, हौ उतरी केॅ बोललै
हम्में कुन्ती रोॅ पुत्रा छेकियै, आपनें सही बोललियै ।
आपनें एक बात गुप्त रखवै, युधिष्ठिर धर्मात्मा छै
हौ हुनी जानी जाय कर्ण बड़ोॅ भाय छै ।
हौ हमरा राज्य दै लेॅ तत्पर होय जाय, हेकरा मेॅ शंका नै छै
हम्में दुर्योधन रोॅ ऋणि छियै, हमरा सेॅ गद्दी रोॅ न्याय चाहै छै ।
युद्ध मेॅ दुर्योधन तरफ रहवै, नमक रोॅ सरियत देना छै
सत्य न्याय पक्षोॅ मेॅ आपनें रोॅ विचार छै ।
कृष्ण रोॅ रथोॅ सेॅ उतरी केॅ कर्ण हस्तिनापुर लौटलै
कर्ण मधुसूदन रोॅ अनुरोध ठुकराय केॅ लौटलै ।
केशव संधि करवाय मेॅ असफल होय गेलै
आबेॅ युद्ध तिथि निश्चित होय गेलै ।
देवी कुन्ती भीतर सेॅ व्याकुल बेवस छेलै
कर्ण आपनोॅ भाय सेॅ लड़ै-मरै लेॅ तत्पर छेलै ।
दुर्योधन कर्ण रोॅ बलोॅ पर फाड़ोॅ कसने छेलै
हिनकोॅ सेना रोॅ नेतृत्व करै लेॅ तत्पर छेलै ।
अंत मेॅ कुंती कर्ण केॅ समझाय लेॅ चाहलकै
घर सेॅ अचानक निकली केॅ कर्ण केॅ सलाह देलकै ।
कर्ण गंगा मेॅ सूर्य के तरफ मुख करनें छेलै
कुन्ती कुछ देर इन्तजार करने छेलै ।
बेटा ! तोंय सूत पुत्रा नै छेकोॅ
तोंय सूर्य पुत्रा छेकोॅ दुआ देलकै ।
हम्में सच-सच बताय लेॅ ऐलोॅ छिहौं
अभागिन नेॅ तोरा उत्पन्न करने छिहौं ।
तोहें हठ नै करोॅ आपनोॅ छः भाय छोहोॅ
कर्ण हाथ जोड़ी केॅ कहलकैµ माता सच कहे छौहौं ।
दुर्योधन केरोॅ उपकारोॅ सेॅ दबलोॅ छिहौं
विपत्ति मेॅ मित्रोॅ केॅ नै छोड़ेॅ पारै छिहौं ।
मित्रा रोॅ तरफ सेॅ युद्ध करना हमरोॅ फर्ज छै
मित्राता केॅ निभाना हमरोॅ कत्र्तव्य छै ।
संकोच छोड़ी केॅ मिललोॅ गेलोॅ छेलै
कुन्ती रोॅ आशा पर तुषारापात होय गेलोॅ छेलै ।
माता हम्में कत्र्तव्य सेॅ विवश छिहौं, क्षमा करै रोॅ कष्ट करोॅ
अर्जुन छोड़ी केॅ दोसरा केॅ ने मारभौं, यकीन करोॅ ।
हमरा खेत ऐला रोॅ बाद पाँच पुत्रा बरकरार रहतौं
चिंता फिक्रोॅ मनोॅ सेॅ हटाय दोहौं ।
पितामह हरदम्मे कर्ण केॅ तिरस्कार करै छेलै
वीरोॅ रोॅ गणना मेॅ हिनका अर्धरथी कहै छेलै ।
भीष्म सेॅ चिढ़ी केॅ कर्ण नेॅ कठिन प्रतिज्ञा करनें छेलै
जब तक पितामह सेनापति रहतै, नै जाय रोॅ ठानी लेने छेलै ।
दस दिन कर्ण युद्ध सेॅ तटस्थ मूक दर्शक छेलै
शस्त्रा नै उठाय रोॅ प्रतिज्ञा मनोॅ मेॅ ठानी लेनेॅ छेलै ।
पितामह दस दिनोॅ मेॅ अर्जुन रोॅ बाणोॅ सेॅ छलनी होय गेलै
समर क्षेत्रोॅ मेॅ अर्जुन रोॅ बाणोॅ सेॅ धाराशाही होय गेलै ।
पितामह बाणोॅ रोॅ शय्या पर पड़लोॅ छेलै
विषम परिस्थिति मेॅ युद्ध बंद होय गेलोॅ छेलै ।
परिजनोॅ नेॅ चारोॅ ओर सेॅ घेरने छेलै
शर-शय्या पर विचित्रा ढंगोॅ सेॅ पड़लोॅ छेलै ।
परिजनोॅ रोॅ भीड़ धीरे-धीरे समाप्त होय गेलै
आबेॅ दादा एकान्त मेॅ पड़लोॅ छेलै ।
एकान्त देखी केॅ कर्ण समीप ऐलै
हमेशा धृष्टता करै वाला केॅ प्रणाम करै लेॅ ऐलै ।
स्नेह पूर्वक कर्ण केॅ इशारा करी केॅ बोलैलकै
बेटा ! तोहें शूरवीर कौरव पक्षोॅ मेॅ, दादा कहलकै ।
हम्में तोरा, हमेशा तिरस्कार करे छेलिहौं
यही उद्देश्योॅ सेॅ तोरा अधिरथी कहै छेलिहौं ।
है युद्धोॅ मेॅ तोहें आपनोॅ मनोबल बढ़ैनें छेल्हौं
तोरा है सब देखी केॅ दुर्योधन हठी होय केॅ डेग बढ़ैनें छिहौं ।
महासंहार रुकी जाय, हम्में चाहै छेलियै
कर्ण तोरोॅ प्रति मनोॅ मेॅ दुर्भावना नै राखनें छेलियै ।
बेटा ! तोहें मनोॅ सेॅ है भावना हटाय दोहोॅ
हमरा प्रति कलुषित भावना छौन, मनोॅ सेॅ हटाय दोहोॅ ।
दादा बोलै छैµतोरा प्रति अपार श्रद्धा छेलै
मस्तक झुकाय केॅ कर्ण सुनी रहलोॅ छेलै ।
कर्ण हुनकोॅ वाणी पर कोय जबाब नै दै छेलै
अधिरथ रोॅ पुत्रा नै छेल्होॅ, कुन्ती रोॅ पुत्रा छेलै ।
दुर्योधन रोॅ साथ छोड़ी केॅ पाण्डव रोॅ साथ दोहोॅ
पाण्डव ! धर्मात्मा सत्यता सेॅ पूर्ण छै हिनकोॅ पक्ष लोहों ।
कौरव कपटी दुराचारी सें भरलोॅ छै
पितामह ! आपनें रोॅ बात सही छै ।
संकट मेॅ साथ देनें छै विश्वासघात नै करवै
कौरव पक्षोॅ मेॅ युद्ध करै वास्तें, प्राण न्योछावर करी देवै ।
वत्स तोरोॅ कामना पूर्ण आरो सफलीभूत होवै
उत्साह पूर्वक दुर्योधन रोॅ पक्षोॅ मेॅ डटलोॅ रहवै ।
दोनोॅ पक्षोॅ मेॅ केरोॅ हार, केकरोॅ जीत होतै
दोनोॅ पक्षोॅ रोॅ योद्धा समर क्षेत्रोॅ मेॅ डटलोॅ रहै छै ।
दोनोॅ आपनोॅ जीतै रोॅ ख्वाब देखै छै
भविष्य तेॅ विधिये हाथोॅ मेॅ छै ।