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मैथिलीक उद्धार / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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झा, मिश्र, चौधरी, लाल, दास,
ठाकुर, मण्डल ओ सिंह गच्छ
छथि भेल उपस्थित सभामध्य
जनु आबि गेल हो पितर-पच्छ
कवि कोकिल जे जनलनि, सनलनि,
देसिल बयनामे धय तनलनि
आजुक युगधरि लऽ नाम हुनक
बहुतोकेँ पी बारह बनलनि
अछि भारत भरिमे स्मृतिक पर्व
लुरिगर जन जा छेकथि आसन
सेवाक नामपर जा मेवा
कचरथि, सोन्हाय राखथि वासन
दू दशक बितल जहिया आयल
ई अपन देशमे अपन राज
देखू उठाय कऽ आँखि कने
अछि भेल कते मैथिलिक काज
भाषणक बेरमे हाथ पटकि
गरजथि, तरजथि आ करथि ‘पोज’
काजक अवसरमे एकमात्र
पल्था लगाय कऽ खाथि भोज,
प्रस्ताव पास करबाक कालमे
हिला दैत छथि लालकिला
आ दू ढेउआकेर लोभ लाभपर
जाइत छनि उत्साह बिला
उत्तीर्ण भेल शतशत बी.ए.एम.ए.
पीएच.डी.ओ डी.लिट्
जीवन गाड़ीमे घसल पेंच ‘नट’
जकाँ किन्तु छथि सभ ‘अनफिट’
जँ नाचि काछि, भरि तान मधुर
ई पर्व मना सुति रहब फेर
तँ बीतल वर्षक वर्ष व्यर्थ आ
उनहल जायत असल बेर
रामक समान न्यायी राजा
आ धयल मैथिली वनक शरण
लव-कुशकेँ देबय पड़ल छलनि
न्यायेक हेतु रण-आमन्त्रण
तँ की अन्यायक एहि राज्यमे
नाचि गाबि अधिकार लेब
लव-कुश! जागू, उद्घोष करू-
रण, हेतु माटि हम पठा देब
बिनु लोटहि जयवारीक भोज
खयबा लय उद्यत अधिक लोक
कय डँड़ाडोरिकेँ ढील, जमाइनि अर्क
पीबि प्रस्तुत कतोक
जानथि नहि ई जे यज्ञ मध्य
कर्त्तव्य अंश की हमर थीक
पाताल प्रवेशेसँ फेरो
उद्धार होयत की मैथिलीक?