भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैना / श्रीधर पाठक
Kavita Kosh से
सुन-सुन री प्यारी ओ मैना,
जरा सुना तो मीठे बैना।
काले पर, काले हैं डेना,
पीली चोंच कंटीले नैना।
काली कोयल तेरी मैना,
यद्यपि तेरी तरह पढ़ै ना।
पर्वत से तू पकड़ी आई,
जगह बंद पिजड़े में पाई।
बानी विविध भाँति की बोले,
चंचल पग पिंजड़े में डोले।
उड़ जाने की राह न पावै,
अचरज में आकर घबरावै।
-रचना तिथि: 26.7.1909, नैनीताल
मनोविनोद: स्फुट कविता संग्रह, बाल विलास, 20