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मैनूँ की होया मैत्थें गई गवाती मैं / बुल्ले शाह
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मैनूँ की होया मैत्थें गई गवाती मैं?
क्यों कमली आक्खे लोकाँ?
मैनूँ की होया है?
मैं विच्च वेक्खाँ ताँ मैं नहीं बणदी।
मैं विच्च वसना ऐं तैं।
सिर ते पैरीं तीक भी तूँ ही,
अन्दर बाहर हैं।
इक पाक इक उरार सुणीन्दा,
इक बेड़ी इक नैं।
मनसूर कहिआ अनलहक्क,
कहु कहाया कैं?
बुल्ला शाह औसे दा आशक,
आपणा आप वन्जाया जैं।
शब्दार्थ
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