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मैने चाहा ही नहीं मुझको सफ़ाई दो तुम / गौरव त्रिवेदी

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मैने चाहा ही नहीं मुझको सफ़ाई दो तुम,
अपनी यादों से मगर मुझको रिहाई दो तुम

मेरी बस इतनी सी ख़्वाहिश को तवज़्ज़ो दे दो,
रोज़ जगते ही सुबह मुझको दिखाई दो तुम

इक भरम रख लो यही कह दो मिलेंगे फिर से,
आस ही बाक़ि रहे ऐसे विदाई दो तुम

अब मेरा मन ही नहीं और ग़ज़ल कहने का
तुम हो गुज़रा हुआ कल अब न सुनाई दो तुम

प्यार के रोग की बस प्यार दवा है तो फिर
लौट कर आओ मुझे मेरी दवाई दो तुम