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मैया, मैं भी कृष्ण बनूँगा / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
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मैया, मैं भी कृष्ण बनूँगा
बंशी, मुझे दिलाना माँ।
अच्छा लगता गाय चराना,
मुझको गोकुल जाना, माँ॥
ग्वालों के संग में खेलूँगा,
यमुना बीच नहाऊँगा।
नाथूंगा मैं विषधर काले,
गेंद छुड़ाकर लाऊँगा॥
चोरी चुपके माखन खाकर
शक्तिवान बन जाऊँगा।
मारूँगा मैं असुर कई,
फिर सुरपुर कंस पठाऊँगा॥
राधा के संग भी खेलूँगा,
पर बंशी न दिखाऊँगा।
नाचूँगा मैं दे दे ताली,
सबको खूब रिझाऊँगा॥