मेला ढोते लोग
हम से कहीं
ज्यादा स्वच्छ हैं
जो महंगे और खूश्बूदार
साबुन से नहाते हैं
और
उस पर भी
‘इत्र’ बरसाते हैं
ये लोग
कभी अघाते नहंी
कभी सडांध इनको
सताती नहीं
ये बहुत ऊपर उठ चुके
लोग हैं
जो मैला ढोते हैं
रोज ढोते हैं
बरसों से ढो रहे हैं
और अघाते नहीं
एक हम हैं
कि
बच्चे के मलमूत्र को
देखकर
नाक-मुंह सिकोड़ने लगते हैं
मेला ढोते ये लोग
ऊपर उठ चुके लोग हैं
जो हमसे भी ज्यादा
स्वच्छ है शरीफ है