मोती-2 / नज़ीर अकबराबादी
परीज़ादों में है नामे खु़दा जिस शान पर मोती।
कोई ऐसा नहीं मोती, मगर मोती, मगर मोती॥
झमक जावे निगाहों में जवाहर ख़ानए कु़दरत<ref>प्राकृतिक रत्नागार</ref>।
जो खा कर पान और मल कर किसी हंस दे मगर मोती॥
रगेगुल<ref>फूल की नस</ref> इस कमर के सामने भरती फिरे पानी।
लचक में और नज़ाकत में जो रखती है कमर मोती॥
इधर हर एक मकां पर मोतियों के ढेर हो जावें।
अदा से नाज़ से हंस कर क़दम रक्खे जिधर मोती॥
सदा सुनकर हर एक की चश्म से मोती टपकते हैं।
फ़क़त बैठे हो गाने में यह रखती है असर मोती॥
अ़जब नक़शा अ़जब सज धज अ़जब आंखें अ़जब नज़रें।
बड़ें ताले<ref>भाग्य</ref> बड़ी किस्मत जो देखे एक नज़र मोती॥
शरफ़<ref>श्रेष्ठता</ref> पन्ने को पन्ने पर शरफ़ हीरे को हीरे पर।
शरफ़ शरफन को लालों पर, रही है जिसके घर मोती॥
हर एक दन्दान मोती, हुस्न मोती, नाम भी मोती।
सरापा<ref>सर से पैर तक</ref> चश्म मोती, तिस पै पहने सरबसर मोती॥
जो खू़बां<ref>सुन्दरियाँ</ref> बेनज़ीर इस दौर में हैं नाजुको रंगी।
शरफ़ रखती है यारो, अब तो सबके हुस्न पर मोती॥