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मोबाइल से शुरू हमारी भोर हुई / सोनरूपा विशाल

 
मोबाइल से शुरू हमारी भोर हुई
इसकी दुनिया सबके चित की चोर हुई।

अख़बारों के पन्ने तह रह जाते हैं
मिस और मिस्टर पहले फोन उठाते हैं
चाय अगर ठंडी भी हो चल जाती है
बातचीत अक्सर कल पर टल जाती है

मन रंगीन पतंग ये उसकी डोर हुई।
मोबाइल से शुरू हमारी भोर हुई।

सुलझ-सुलझ कर भी उलझे -उलझे लगते
कितनी बातें छोटे से मन में भरते
साये बिन काया जैसे हो हम वैसे
सोच रहे इसके बिन जीते थे कैसे

जीवन धारा अब सागर का शोर हुई।
मोबाइल से शुरू हमारी भोर हुई।

आभासी दुनिया में आभासी होकर
पाया है थोड़ा लेकिन ज़्यादा खोकर
तकनीकी है ये युग ,इक सच्चाई है
इसकी लेकिन अपनी इक अच्छाई है

अब मुश्किल भी इसके बिन हर ओर हुई।
मोबाइल से शुरू हमारी भोर हुई।