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मोर सिपाही हो / भोलानाथ गहमरी
Kavita Kosh से
जब-जब देसवा पर
परली बिपतिया
मोर सिपाही हो, जिया के तूँही रखवार
बाप-महतारी तेजलऽ
तेजलऽ जियावा
मोर सिपाही हो, तेजल तूँ घरवा-दुआर।
छोड़ि सुख-निदिया भइली
तपसी जिनिगिया
मोर सिपाही हो, चूमेले माटी लिलार।
मनवाँ गंगाजल लागे
गीता तोरी बोलिया
मोर सिपाही हो, करतब अटल पहार।
धरती बचनियाँ माँगे
माँगेले जवनियाँ
मोर सिपाही हो, माँगले तोहरो पियार।
जीत बरदनवाँ तोहरो
मीत रे मरनवाँ
मोर सिपाही हो, चरन पखारीं तोहार।