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मोहनी बांसुरिया / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
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एक बार फूँकैय रामा मोहनी बांसुरिया हो।
सखिया के संग राधा आबैय हो सांवलिया॥
सिर पर दधि दूध भरलो मटुकिया हो।
अंचरा काढ़िये गोरी ताकैय हो सांवलिया॥8॥
बारहो बरीषिया के सब एक तुरिया हो।
छुम छाम, झुम झाम, नाचैय हो सांवलिया।
छुम छाम, झुम झाम, छुम छाम, झुम झाम।
नाचैय गोरी ग्वाल बाल संग हो सांवलिया॥9॥
कदम के छैंया छैंया नाचैय लरकैंया रामा।
गैंया चराबे गोप ठैंया हो सांवलिया॥
लुकत छीपत अरु कुकरु करत कृष्ण।
कुँज-कुँज खेलत खेलात हो साँवलिया॥10॥