मोहन-मन-धन-हारिणी, सुखकारिणी अनूप।
भावमयी श्रीराधिका, आनन्दाबुधि-रूप॥
आकर्षक ऋषि-मुनि-हृदय अनुपम रूप ललाम।
कृष्णरसार्णव रस-स्वयं लोकोार सुखधाम॥
दीन-हीन मति मलिन मैं असत-पंथ आरूढ़।
दुःखद भोगोंमें सदा अति आसक्त विमूढ़॥
युगल कृपानिधि! कीजिये मुझपर कृपा उदार।
पद-रज-सेवाका सतत मिले मुझे अधिकार॥