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मोहन के हिय में भरी मधुर सुधा-रसखान / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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मोहन के हिय में भरी मधुर सुधा-रसखान।
निकसी वह मधु-सरित-सी बनि मुरली की तान॥
निज रस-सरिता मधुर में बृत्ति हुई तल्लीन।
मुरलि-समाधि लगी हुए बाह्य चेतना हीन॥
त्यौं ही मोहन-मोहनी सुनि मुरली संगीत।
हुई स्तध बेभान ज्यौं, चित्र-लिखी-सी भीत॥