भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोहब्बत तर्क की मैंने, गरेबाँ सी लिया मैंने / साहिर लुधियानवी
Kavita Kosh से
मोहब्बत तर्क की मैंने, गरेबाँ सी लिया मैंने
ज़माने अब तो ख़ुश हो, ज़हर (ये) भी पी लिया मैंने
अभी ज़िन्दा हूँ लेकिन, सोचता रहता हूँ ये दिल में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैंने
मोहब्बत तर्क की मैंने
तुझे अपना नहीं सकता, मगर इतना भी क्या कम है
कि कुछ घड़ियाँ तेरे ख़्वाबों में खो कर जी लिया मैंने
मोहब्बत तर्क की मैंने
बस, अब तो मेरा दामन छोड़ दो बेकार उम्मीदों
बहुत दुख सह लिए मैंने, बहुत दिन जी लिया मैंने
मोहब्बत तर्क की मैंने