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मोहब्बत में क्या-क्या मुक़ाम आ रहे हैं / जिगर मुरादाबादी
Kavita Kosh से
मोहब्बत में क्या-क्या मुक़ाम आ रहे हैं
कि मंज़िल पे हैं और चले जा रहे हैं
ये कह-कह के हम दिल को बहला रहे हैं
वो अब चल चुके हैं वो अब आ रहे हैं
वो अज़-ख़ुद<ref>स्वयं ही</ref>ही नादिम<ref>शर्मिंदा</ref>हुए जा रहे हैं
ख़ुदा जाने क्या ख़याल आ रहे हैं
हमारे ही दिल से मज़े उनके पूछो
वो धोके जो दानिस्ता<ref>जान-बूझकर</ref> हम खा रहे हैं
जफ़ा करने वालों को क्या हो गया है
वफ़ा करके हम भी तो शरमा रहे हैं
वो आलम है अब यारो-अग़ियार <ref>मित्र और शत्रु</ref>कैसे
हमीं अपने दुश्मन हुए जा रहे हैं
मिज़ाजे-गिरामी <ref>उनके स्वास्थ्य </ref>की हो ख़ैर यारब
कई दिन से अक्सर वो याद आ रहे हैं
शब्दार्थ
<references/>