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मोहब्बत से दामन बचाना हमारा / अविनाश भारती

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मोहब्बत से दामन बचाना हमारा,
सलीका है उल्फ़त जताना हमारा।

ग़ज़ल का हुनर सबको ये भी लगे है,
तड़प, दर्द, आंसू छुपाना हमारा।

मयस्सर नहीं जब हमें दाल रोटी,
मुनासिब है कितना कमाना हमारा।

हक़ीक़त ज़माने की है सो कहेंगे,
करे जो है करना ज़माना हमारा।

हमें देर से बात आयी समझ में,
जो भूले वही था ठिकाना हमारा।

ग़मों में हँसाना-मनाना खुदी को,
ये दस्तूरे-उल्फ़त निभाना हमारा।