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मोहल्ले का चौकीदार / शहनाज़ इमरानी

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अपने हाथ का तकिया बना कर
अक्सर सो जाता है
अपनी छोटी-छोटी आँखे और चपटी सी नाक लिए
सब को हाथ जोड़ कर सर झुकाता है
नाम तो बहादुर है पर डर जाता है
ख़ुद को साबित करने के लिए
चौकन्ना हाथ में लिए लाठी
उसे पटकता है ज़मी पर
चिल्लाता है ज़ोर से ’जागते रहो’
अपनी चौकन्नी आँखों का
एक जाल-सा फैलाता है
फिर भी सड़क का कोई कुत्ता बिना भौंके
निकल ही जाता है
हर महीने लोगों के दरवाज़े खटखटाता है
कुछ दरवाज़े तो पी जाते हैं उसकी रिरियाहट को
कुछ देते है आधा पैसा
कुछ अगले महीने पर टाल देते हैं
मेमसाब घर जाना है
माँ बहुत बीमार है
इस बार तो पूरा पैसा दे दो
और मेमसाब कुछ सुने बगैर
दरवाज़ा बन्द कर के कहती है
छुट्टा नहीं हैं फिर आना ।