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मोह-भंग / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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एमहर सुर बिच एखनहु मन संदेह-रेह नहि मेटा सकल
करिअ परीक्षा, विष्णु स्वयं की कृष्ण रूप अवतर भूतल
अथवा गोपकुमार नन्द-नन्दन छथि सहजहि मनुज समक्ष
विधिहुक भ्रम जमले नहि छँटले, जा धरि नहि प्रमाण प्रत्यक्ष
किछु तनिकहु सन्देह हरल हरि मायामय लीला विस्तारि
सुरपति इन्द्रहुधरि मोहक अछि पसरल जाल विशाल विचारि
अग्नि-कुबेर-वरुणहुक परिजनमे किछु-किछु छापल सन्देह
किन्तु दिनपतिक ताप-तेज की छापि सकत घन कन वा खेह