मोह अगर छूट जाये
अपने प्रतिबिम्ब का
दर्पण की स्याह पीठ
उजली हो सकती है
सभी देख सकते हैं
साफ-साफ आर-पार
दर्पण से छले गये
चेहरे घर बेशुमार
और बहुत हल्के से
जमी धूल शीशे की
पोछ! पूछ सकते हैं
धूप कहां टिकती है
वरना ये
सारा का सारा
मौसम प्यारा
अपने अपने ‘स्व’ में
हो जायेगा खारा
और सभी संवेदन
खिड़की से झाँक-झाँक
देखेंगे, लाश लिए
भीड़ कहाँ रुकती है