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मौत के फरमान ख़ुद / माधव कौशिक
Kavita Kosh से
मौत के फ़रमान ख़ुद पत्थर पे खुदवाने पड़े।
ताज को तामीर कर ख़ुद हाथ कटवाने पड़े।
कल तलक जिनकी इबादत वक़्त करता था बहुत,
अब उन्हीं लोगों के बुत शहरों से हटवाने पड़े।
उम्र की मजबूरियाँ थीं या गुनाहों की सज़ा,
वक्त की दीवार पे सब ख़्वाब चिनवाने पड़े।
मेरे अंदर के पयम्बर फूटकर रोए तभी,
जब ख़ुदा के सामने भी हाथ फैलाने पड़े।
हादसों के दौर में इक हादसा यह भी हुआ,
क़ातिलों को अपने दिल के ज़ख़्म दिखलाने पड़े।