मौत के बारे में / जॉन कीट्स / अनिल जनविजय
1.
क्या मौत की नींद सो सकते हैं, जब जीवन हो एक सपना,
और सुख लगता हो किसी प्रेत सा, या उसे कहें मृगतृष्णा ?
जब दृश्य ख़ुशी के दिखें कोई तो लगें वो क्षणिक आनन्द,
पीड़ा पैदा करता है मन में यह विचार कि एक दिन मरना।
2.
कितनी अजीब बात है कि पृथ्वी पर आदमी ख़ूब घूमता है,
दुखी रहता है, शोकग्रस्त वो, मन उसका नहीं झूमता है ।
यह ऊबड़-खाबड़ राह जीवन की; अकेले वह झेल न पाए
भावी जीवन का सर्वनाश ही उसमें जीने की ललक जगाए ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब आप यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
John Keats
On Death
1.
Can death be sleep, when life is but a dream,
And scenes of bliss pass as a phantom by?
The transient pleasures as a vision seem,
And yet we think the greatest pain's to die.
2.
How strange it is that man on earth should roam,
And lead a life of woe, but not forsake
His rugged path; nor dare he view alone
His future doom which is but to awake.