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मौत से पहले / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
सूख-सूख मर गई
रेत में नहा-नहा चिड़िया
नहीं उमड़ा उस पर
बिरखा को रत्ती भर नेह ।
ताल-तलाई
कुँड-बावड़ी
सपनों में भी
रीते दिखते हैं
भरे
कब सोचा था उस ने
मौत से पहले
एक साध थी;
नहाती बिरखा में
दो पल सुख भोगती
जो ढकणी भर बरसा होता मेह ।