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मौन और काली ज़ुबान / पूनम भार्गव 'ज़ाकिर'

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मौन ने खींच लिए थे
वो शब्द
जो ज़ुबान पर आते तो
कहर बन जाते

कि काली ज़ुबान का ख़िताब
हर उस शख़्स ने बख़्शा
जो वाबस्ता था
उसके लफ़्ज़ों की चाल से

धीरे-धीरे या तेज़ गति से
विदीर्ण होगा उनका कलेजा भी
क्योंकि
परावर्तन की प्रक्रिया में
शुरूआती चाल
उन्होंने ही चली थी

खींच लिये गये शब्द
तह दर तह
विस्फोटक सामग्री के
भंडारण में कार्यशील हैं

वक्र दृष्टि और
मौन का संचालन
दिल और दिमाग की
उथलपुथल में बाधित हो
पुरजोर कोशिश करता है कि
क्षद्म बना रहे
स्थिर होना आम इंसान के
वश में कहाँ है

स्थितप्रज्ञ जैसा महाशब्द
अस्तित्व में आने से पहले ही
सुना अनसुना-सा रह जाता है

सम्भावित मनोदशा में
और
वर्तुल दृश्यावली में

हे कृष्ण!

तुम भी तो मुझे
रथ का पहिया उठाये
प्रहार के लिए
अग्रसर दिखते हो!