Last modified on 18 अक्टूबर 2025, at 17:39

मौन का वृक्ष/ प्रताप नारायण सिंह

कभी-कभी लगता है
मौन भी एक वृक्ष है,
जिसकी जड़ें भीतर धँसी हैं,
इतनी गहरी
कि कोई आँधी भी
उसे हिला नहीं सकती।

उसकी शाखाओं पर
स्मृतियाँ
पत्तों की तरह झूलती हैं—
कुछ हरित, नवल और जीवित,
कुछ पीली और बेजान|

उस पर बैठी चिड़ियाँ
गीत नहीं गातीं,
बस पंख फड़फड़ाती हैं,
मानो अनसुने शब्द
हवा में लिख रही हों।

मैं जब भी थक जाता हूँ
कुछ देर
उस वृक्ष की छाया में बैठता हूँ।
वहाँ कोई प्रश्नोत्तर नहीं,
मात्र एक ठंडा सन्नाटा होता है,
जो कभी-कभी
प्रार्थना जैसा लगता है।