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मौन को बेजुबान मत समझो / संतोष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मौन बेजुबान नहीं है
जब मुखरित होता है
क्रांति आ जाती है
तख्ते पलट जाते हैं
मौन छुपी आग
जब लावा बन फूटती है
तो घबराकर काली गंगा
राह बदल लेती है
झरने पहाड़ों में वापस
समा जाते हैं
शांत सतीसर झील में
एक और हिमालय उग आता है
कायनात का सन्नाटा
तूफान आने का संकेत है
जो मिटा सकता है
हर ग़लत को
फिर चाहे पितृसत्ता हो
या खाप पंचायत
मौन को बेज़ुबान मत समझो