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मौन ध्वनि / पुष्पिता
Kavita Kosh से
सारी विध्वंसात्मक
कोशिशों के बावजूद
मेरे वक्ष का कोई शब्द
बिगड़ नहीं पाएगा।
अनुपस्थिति में भी
धड़कनें सुनेंगी सही-सही
शब्दों की सार्थक अनुगूँज
बिना क्षितिज के दिवस होंगे
न सुबह होगी
न शाम होगी
चिड़ियों की पुकार में
घुलेंगे प्रेम के शब्द
उठाएँगे तुम्हें
तुम्हारे सर्वस्व के साथ
सर्वस्व के लिए।
चह-चह में गूँजेगी राग-भैरवी
न ओस...
न आवाज...
लेकिन मेरा 'मौन' रहेगा प्रेम के साथ
प्रेम की तरह चुप
अंतहीन रिक्तता को भरने के लिए।