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मौन बैठा किस लिये क्या दोष तेरा है / नन्दी लाल

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मौन बैठा किस लिये क्या दोष तेरा है।
तेल, बाती, दीप, माचिस फिर अँधेरा है।

रात भर सोया नहीं है चाँद पूनम का,
चाँदनी ने चित्त उद्भव का उकेरा है।

पोर पर गिन गिन सितारे नींद आयी सब
जागिए अब हो गया अनुपम सवेरा है।

दोष दोनों का यहाँ पर है बराबर का,
लोभ का तो स्वार्थ ही भाई चचेरा है।

बीन नफरत की दबाये घूमता मुँह में,
आदमी अब हो गया सचमुच सपेरा है।

कोठियों में दर्द केवल झूठ का ही है,
है दुखी तो सिर्फ दुनिया का कमेरा है।

वक्त की टूटी फटी सब जोड़ देता है,
घूमता दर दर लिये गठरी ठठेरा है।

आइए सुन ले सुना ले बात आपस की,
देखिए कैसा हुआ मौसम लुटेरा है।

आइने में देखकर सूरत किसी की फिर,
लग रहा है डिग गया ईमान मेरा है।

दो घड़ी जी ले जमाने की तरह दोनों
है नहीं अपना यहाँ कुछ ना ही तेरा है।