मौन बैठे तोड़कर निब जज सभी
लाल स्याही में रँगे काग़ज़ सभी
रूप ने विश्वास को छल कर कहा
प्यार में, व्यापार में जायज सभी
आसनों पर बैठ टीका वेद की
कर रहे जो जन्म से जारज सभी
कल्पना जिसने सजाया था गगन
पहन मृगछाला चली वह तज सभी
जाल को मछली निगलने को चली
जागरण का देख लो अचरज सभी
अब कला के देखिए तेवर नए
सादगी ने जीत ली सजधज सभी