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मौन हैं सारी दिशायें बोलता कोई नहीं / उर्मिल सत्यभूषण
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मौन हैं सारी दिशायें बोलता कोई नहीं
डोलती मुखबिर हवायें बोलता कोई नहीं
इस तरफ भी आग थी औ, उस तरफ भी आग थी
जल गई सद्भावनायें बोलता कोई नहीं
कौन है वह कौन है जो लहलहाते बाग में
वो गया विष की लताये, बोलता कोई नहीं
भोली भेड़ों को बनाकर क्रूर बर्बर भेड़िये
नाचती हैं वंचनायें बोलता कोई नहीं
बहशियों ने जो मचाया शोर अब खामोश है
फिर भी है बोझिल हवायें, बोलता कोई नहीं
आस्था की सांस घुटती हाय उर्मिल क्या करें
संशय की कसती भुजायें, बोलता कोई नहीं