मौला ये तमन्ना है कि जब जान से जाऊँ
जिस शान से आया हूँ उसी शान से जाऊँ
बच्चों की तरह पेड़ों की शाख़ों से मैं कूदूँ
चिड़ियों की तरह उड़के मैं खलिहान से जाऊँ
हर लफ़्ज़ <ref>शब्द</ref>महकने लगे लिक्खा हुआ मेरा
मैं लिपटा हुआ यादों के लोबान से जाऊँ
मुझमें कोई वीराना भी आबाद है शायद
साँसों ने भी पूछा था बियाबान<ref>निर्जन क्षेत्र</ref> से जाऊँ
ज़िंदा मुझे देखेगी तो माँ चीख उठेगी
क्या ज़ख़्म लिए पीठ पे मैदान से जाऊँ
क्या सूखे हुए फूल की क़िस्मत का भरोसा
मालूम नहीं कब तेरे गुलदान<ref>फूलदान</ref> से जाऊँ
शब्दार्थ
<references/>