भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मौसमे-गुल / अनिरुद्ध सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौसमें-गुल तेरे आने का इशारा होगा
सर्द आहों में किसी ने तो पुकारा होगा

काँप उठती है लहर तेज़ हवा में ऐसे
झील में जैसे परिंदों का किनारा होगा

रोज़ होती है मुहब्बत में अदावत उनसे
आप कहते हैं, नहीं ऐसा दुबारा होगा

सिर्फ़ देखा था सलीके से हमारे ग़म को
अपने सीने में कहाँ हमको उतारा होगा

सोच लेना ये मुनासिब था, यही सोचा है
धूप आँगन में है, सूरज भी हमारा होगा!