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मौसमे-दिल को ख़िज़ाँओं के असर ले डूबे / मधु 'मधुमन'

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मौसमे-दिल को ख़िज़ाँओं के असर ले डूबे
ज़िंदगी हमको तेरे ज़ेरो-ज़बर ले डूबे

कश्मकश में ही गँवा बैठे कई मौक़े हम
हमको अपने ये अगर और मगर ले डूबे

आ के पायी है बुलंदी पर तो बस तन्हाई
क्या ग़ज़ब हमको हमारे ही हुनर ले डूबे

नूर तारों का पहुँचता तो पहुँचता कैसे
इसको तो राह में ही शम्स-ओ-क़मर ले डूबे

दरमियाँ कोई भी दीवार नहीं थी पहले
अपने घर को ये सियासत के शरर ले डूबे

घर तो कच्चे थे भले लोग वह सच्चे थे मगर
आपसी मेल को कंक्रीट के घर ले डूबे

आँधियों की तो ख़ता कोई नहीं थी‘मधुमन’
आपको आपके ,अंदर के ही ,डर ले डूबे