भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौसम की पेशगी / मनोज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मौसम की पेशगी
दरवाज़े पर
दस्तक देकर
भिनसारे
आ-टपका मौसम
पेशगियों की भेंट लेकर
आसमान की छत पर
घटाओं की खिड़की से
झांक रही धूप-रमणी
लहराती चंदहली चुनरी ओढ़े
बात जोहती रही--
नाचती-इतराती
मृदंग बजाती
बूँद-छैलियों की.