भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौसम ने तेवर बदले हैं / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
Kavita Kosh से
मौसम ने तेवर बदले हैं
ख़ुश होकर काँटे मचले हैं
हमें व्यथाओं से डर कैसा
हम पीड़ा की गोद पले हैं
सिर्फ़ तुम्हारे हैं तन-मन से
जैसे भी हम बुरे-भले हैं
कभी न ऐसे दीप बुझेंगे
जो आंधी के बीच जले हैं
मंज़िल उनको ही मिल पाई
जो काँटों की राह चले हैं
आज देश के नेताओं के
मन मैले हैं, तन उजले हैं
विजय-वधू ने वरा उन्हीं को
क़फ़न बांध कर जो निकले हैं
कहने को दीवाली है पर
बहुत अंधेरे दीप तले हैं
रोनेवाले सोच ज़रा कब
रोने से पत्थर पिघले हैं
‘मधुप’ गिरे नीचे उतने ही
जो जितने ऊपर उछले हैं