भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हारा तो ऑगण रूखड़ो / मालवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बधाई लाई ननदी, हां रे सांवलिया
कहां से आई सौंठ, कांह से आई पीपली
कहां से आई ननदी, हां रे सांवलिया
बम्बई से आई सौंठ, इन्दौर से आई पीपली
फलाने गांव से आई ननदी, हां रे सांवलिया
काय में आई सौंठ, काय में आई पीपली
काय में आई ननदी, हां रे सांवलिया
डब्बे में आई सौंठ, डब्बी में आई पीपली
तांगे में आई नंदी, हां रे सांवलिया
काहे को आई सौंठ, काहे का आई पीपली
काहे को आई नंदी, हां रे सांवलिया
जच्चा के लिए सौंठ, बच्चा के लिए पीपली
लूटन को आई नंदी, हां रे सांवलिया।