भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हारी पांती / निशान्त
Kavita Kosh से
बुढाप मांय आय’र
सै सौक मिटग्या
घर में कोई काम
सुळटेड़ो
लाखां रो लागै
मन मांय कदे कीं आवै
पण तिनखा सारी
टाबरां पर लाग ज्यावै
म्हारै पांती तो
फगत अै छुट्टी आवै ।