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म्हारी साख / मनोज पुरोहित ‘अनंत’
Kavita Kosh से
रात तो
काल भी ही, आज भी है
काल भी रैसी
पण
बात नीं रैसी।
अंधारो होसी
काल भी, आज भी
चानणै री
रैसी उडीक
मिटसी कद।
दिन रात बिचाळै
भंवसी सबद
सबद बिलामाइजसी
अरथाइजसी
मिटसी दिन-रात
खूटसी अरथ, छूटसी बात
गम ई जासी सबद
कुण भर सी साख ?
म्है हूं
पण म्हारी भी
कुण भरसी साख ?