भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हारो कमरो / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
बोदो माचो है
भींत सूं अड़ा‘र राखेड़ो
हींडा खांवती मेज माथै
चिण्योड़ी है किताबां
भीतां माथै लटकै है
नूवां पुराणां कलैंडर
आळै में धरयोड़ो है रेडियो
खूंट्या माथै टंग्योड़ा है गाभा।
भळै ई
आठ बाई दस फुट रो
ओ म्हारो कमरो
साधारण तो कोनी
ब्रह्मा हुवणै री
म्हारी हूंस रो
साखी है।
इण री हळगळ में
पसरयोड़ी है केई
अणलिखी
काळजयी कवितावां
जकी म्हनैं सोधै है।