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म्हारो भायलो / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
थूं
आपो-आपरी
पीठ थपथपा’र
फूल’र कुप्पो हुय जावै
काच साम्हीं
बै ईज जावै
जिकां में
साच देखण री
अर सुणण री
हिम्मत हुवै
थूं अंधारो ढोंवणियो
म्हारो भायलो
उजास री बात ई नीं करै।