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म्हारो मन । / मदन गोपाल लढ़ा
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थूं ओझा !
कीलै है फगत जाड़
का कर सकै है
म्हारै मन रो ई
कीं जाबतो ?
म्हनैं अधा राख्यो है
बैरी मनड़ै
ओपरी छिंया दांई।
दुनियांदारी बाबत
म्हारी ऊंडी समझ नै
एक छिण में
खूंटी टांग देवै
ओ बाळणजोगो
अर म्हैं चेताचूक हुयोड़ो
उखण्यां फिरूं
आखै मुलक री पीड़ नै।