Last modified on 1 मई 2016, at 11:13

म्हैफिलन कों गुजार पाये हम / नवीन सी. चतुर्वेदी

म्हैफिलन कों गुजार पाये हम।
तब कहूँ खल्बतन पै छाये हम॥

हम उदासी के कोख-जाये हैं।
जिन्दगी कों न रास आये हम॥

खाद-पानी बनाय खुद कों ही।
सिलसिलेबार लहलहाये हम॥

नस्ल तारेन की जिद्द कर बैठी।
इस्तआरे उतार लाये हम॥

आतमा कों दबोच कें माने।
हरकतन सों न बाज आये हम॥

फर्ज हम पै है रौसनी कौ सफर।
नूर की छूट के हैं जाये हम॥

‘प्यास’ कों बस्स ‘प्यार’ करनौ हो ।
एक अक्षर बदल न पाये हम॥