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यकीन / प्रतिमा त्रिपाठी
Kavita Kosh से
यकीन जानो!
एक दिन सिंड्रेला की तरह
अनजाने ही
तुम अपने एक पाँव की जूती
गुमाँ कर लौटोगी
और उस दिन
तुम्हारा पाँव खोजते हुए
किस्मत
तुम्हारा दरवाज़ा खटखटाएगी।