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यकीन / मदन गोपाल लढा
Kavita Kosh से
तुमसे प्रेम करते वक्त
कब सोचा था मैंने
कि इस तरह
बिखर जाएगा
हमारे सपनों का संसार।
आज भी
याद के बहाने
मैं देख लेता हूँ
मन के किसी कोने में
उस दुनिया के निशान।
मुझे यकीन है
कि तुम भी
कभी-कभार तो
जरूर संभालती होंगी
उस संचित सुख को
इसी तरह।
मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा