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यक्षप्रश्न / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
यहाँ तिरंगा नहीं फहरेगा, भारत की सीमा है
शांति भंग होती है इससे, सद्भावों पर खतरा
नेताओं का बोल रहा है, लहूलुहाया पतरा
राष्ट्रभक्ति अपने स्वदेश में कांगे्रस की बीमा है ।
कहाँ-कहाँ फहराएं झण्डा ! भाग्यविधाता कहिए
कौन-कौन-सा हिस्सा भारत का है ? मैं भी जानूँ
क्यों अखण्ड भारत पर इतना उछलूँ, कूदूँ, फानूँ
सही-सही भारत का नक्शा भारत को अब चहिए ।
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, सब पर रोज बहस है
जितनी की ‘राजाओं’ के आचार भ्रष्ट पर होती
चूने की गोली को मैं तो समझ रहा था मोती
एक बूँद पर, एक निमिष में कैसा तहस-नहस है ।
अपना भारत कैसा था, अपना भारत है कैसा
राष्ट्रभक्ति क्या यहां टिकेगी जहाँ टिका है पैसा ।