यक्ष प्रश्न / शिवनारायण / अमरेन्द्र
है कोसो पसरलोॅ सन्नाटा
कोॅन नाशोॅ रोॅ
आवै के पीठिका छेकै, प्रभु!
साली पहिलें हमरा फुसलावै वास्तें
जबेॅ दीदी सुनावै छेलै एक ठो कथा
जैमें एक दैंत आवै के पहिलें
यहा रं पसरलोॅ सन्नाटा में
एक बुतरु कानै छेलै एकसुरे
आरो फेनू
आगू रोॅ कथा सुनले बिना
हम्में अपना केॅ दीदी के गोदी में राखी
गुम्मां मतर निडर होय जैयै
कैन्हेकि तबेॅ
दुनियां के कोय्यो डोॅर सें
हमरोॅ मुक्ति वास्तें
एक्के उपाय छेलै
दीदी रोॅ वहा गोद।
मतरकि जबेॅ हम्में सपना में
बगीचा आरो पहाड़ोॅ पर घूमियै
ऊ दैंत फेनू हमरोॅ सामना में खाड़ोॅ होय जाय
पूछै, हमरोॅ जीयै के अर्थ
कहै, कैन्हें तोंय पिछुलका जन्मोॅ के कृति
अधूरा छोड़ी
धरती पर बोझ बढ़ावै लेली
कैन्हें पुनर्जन्म लेलैं?
हम्में टुकुर-टुकुर ओकरा ताकियै
आरो कुछुवो नै समझेॅ पारै के दुक्खोॅ सें
कानेॅ लागियै एक सुरे...
तबेॅ हमरा लागै
एक्के पलोॅ में वै आपनोॅ लाल टुस-टुस पंजा सें
हमरा टुकड़ा-टुकड़ा करी अपनोॅ ढिन्नोॅ भरी लेतै।
आरो हमरोॅ सामना
एक खलिया सन्नाटा
पसरी जाय कोसो कोस...।
आय फेनू
वहा खलिया, लाल टुस-टुस सन्नाटा
पसरेॅ लागलोॅ छै कोसो
ई कोॅन पुनर्जन्म के व्यथा रोॅ
शाप छेकै, प्रभु!
तबेॅ सपना में
दैंत के सवाल सुनी
आरो उत्तर नै दिएॅ पारै के दुक्खोॅ सें
हम्में कानेॅ लागै छेलियै एक सुरे
मतर आय तेॅ हम्में जागी रहलोॅ छियै
आबेॅ कोय जक्ख हमरा सें पूछै-
बोल, अपनोॅ जीयै रोॅ अर्थ
कैन्हें तोहें स्वार्थ साधै लेली
मनुक्खोॅ केॅ अगड़ा-पिछड़ा में बाँटी
है लादलोॅ अस्तित्व के लड़ाय केॅ
आदिम अगनकुण्ड में झोकलैं,
आकि मन्दिर-मस्जिद के नामोॅ पर
ओकरोॅ सौंसे शक्ति केॅ नाशलैं
आकि सत्ता पक्षोॅ के
लपलपैतें महत्वकांक्षा के तृप्ति लेली
सौंसे राष्ट्र केॅ
बहुराष्ट्रीय कम्पनी सिनी के पिंजड़ा में
बंद करलैं
आकि फेनू सत्ता स्वाद के डंक सें
मानुष केॅ अमानुष बनैलैं?
हेने कत्तेॅ नी यक्ष प्रश्न गूंजै छै
आरो पसरी जाय छै
कोसो तांय खामोशी...
आखिर ई सब यक्ष-प्रश्नोॅ सें
कहिया मुक्ति मिलतै, प्रभु!
कहिया? कहिया? कहिया?