भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यक-ब-यक शोरिशे-फुग़ाँ की तरह / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Kavita Kosh से
यक-ब-यक शोरिशे-फुगाँ की तरह
फासले-गुल आई इम्तहाँ की तरह
सहने-गुलशन में बहरे-मुश्ताकां
हर रविश खिंच गयी कमान की तरह
फिर लहू से हर एक कासा-ए-दाग़
पुर हुआ जामे-अर्गवाँ की तरह
याद आया जुनूने-गुमगश्ता
बे-तलब कर्जे-दोस्ताँ की तरह
जाने किस पर हो मेहरबां क़ातिल
बे-सबब मर्गे-नागहाँ की तरह
हर सदा पर लगे हैं कान यहाँ
दिल संभाले रहो जुबां की तरह