दृष्टिपटल के लिए जैसे दृष्टि, गले के लिए आवाज,
बुद्धि के लिए गिनती, हृदय के लिए धड़कन,
मैंने शपथ ली थी अपनी कला वापस करने की
उसके जीवन-रचयिता को,
उसके आदि-स्रोत को।
मैंने झुकाया उसे धनुष की तरह,
प्रत्यंचा की तरह खींचा
और परवाह नहीं की शपथ की।
यह मैं नहीं था शब्दों के अनुसार शब्दकोश बनाता हुआ
पर उसने मुझे बनाया लाल मिट्टी में से,
यह मैं नहीं था जिसने टॉमस की पाँच उँगलियों की तरह
पाँच इन्द्रियाँ डाली दुनिया के भरे घाव पर,
इसी घाव ने ढँक दिया मुझे,
और जीवन चल रहा है
हमारी इच्छाओं से अलग।
क्यों सिखाया मैंने वक्रता को सीधापन,
धनुष को वक्रता और पक्षी को बन का जीवन?
ओ मेरे दो हाथो! तुम एक ही तार पर हो,
ओ यथार्थ और भाषा!
मेरी पुतलियों को और चौड़ा करो
और सहभागी बनाओ उन्हें अपनी राजसी शक्ति का!
ओ दो पंखों!
वायु और पृथ्वी की तरह विश्वसनी
मेरी नाव के चप्पुओ!
मुझे बने रहने दो किनारे पर, देखने दो
किसी करिश्में द्वारा ऊपर उठाये यान की
मुक्त उड़ान को!