भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यथार्थ / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
राह का
नहीं है अंत
चलते रहेंगे हम!
दूर तक फैला
अंधेरा
नहीं होगा ज़रा भी कम!
टिमटिमाते दीप-से
अहर्निश
जलते रहेंगे हम!
साँसें मिली हैं
मात्र गिनती की
अचानक एक दिन
धड़कन हृदय की जायगी थम!
समझते-बूझते सब
मृत्यु को छलते रहेंगे हम!
हर चरण पर
मंज़िलें होती कहाँ हैं?
ज़िन्दगी में
कंकड़ों के ढेर हैं
मोती कहाँ हैं?