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यदि तुम नहीं माँगोगे न्याय / कुमार अंबुज
Kavita Kosh से
यह विषयों का अकाल नहीं है
यह उन बुनियादी चीज़ों के बारे में है जिन्हें
थककर या खीझकर रद्दी की टोकरी में नहीं डाला जा सकता
जैसे कि न्याय —
जो बार-बार माँगने से ही मिल पाता है थोड़ा-बहुत
और न माँगने से कुछ नहीं, सिर्फ अन्याय मिलता है
मुश्किल यह भी है कि यदि तुम नहीं माँगोगे
तो वह समर्थ आदमी अपने लिए माँगेगा न्याय
और तब सब मजलूमों पर होगा ही अन्याय
कि जब कोई शक्तिशाली या अमीर या सत्ताधारी
लगाता है न्याय की गुहार तो दरअसल वह
एक वृहत्, ग्लोबल और विराट अन्याय के लिए ही
याचिका लगा रहा होता है ।