भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यदि नाथ का नाम दयानिधि है / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि नाथ का नाम दयानिधि है तो दया भी करेंगें-
 कभी न कभी
दुखहारी हरि, दुखिया जन के, दुःख क्लेश हरेंगे।
कभी न कभी
जिस अंग की शोभा सुहावनि है,
जिस श्यामल रंग में मोहनि है।
उस रूप सुधा के सनेहियों के दृग प्याले भरेंगे।
कभी न कभी
करुणानिधि नाम सुनाया जिन्हें,
चरणामृत पान कराया जिन्हें,
सरकार अदालत में गवाह सभी गुजरेंगे।
कभी न कभी
हम द्वार पै आपके आके पड़े,
मुद्दत से इसी जिद पर हैं अड़े।
भव-सिन्धु तरे जो बड़े तो बड़े ‘बिन्दु’ तरेंगे-
कभी न कभी